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About Vermi-Compost

हमारे देश में सन 1970 के दशक से हरित क्रांति की शुरुआत के साथ ही मिट्टी में उर्वरकों का उपयोग प्रारंभ हुआ। अधिक से अधिक पैदावार लेने के लिये उर्वरकों का इस्तेमाल लगातार बढ़ाया गया। इन रासायनिक खादों के इस्तेमाल का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि मिट्टी बेजान होती गयी। इस मिट्टी से उपजाये गये अनाज, फल और सब्ज़ियाँ बेस्वाद हो गये हैं। इनकी पौष्टिकता घट गयी है। इनके लगातार इस्तेमाल से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट गयी है। फलत: आज आदमी तमाम तरह की बीमारियों की चपेट में आ गया है।
इन स्थितियों को देखते हुए वैज्ञानिकों का ध्यान एक नन्हें से प्राणी केंचुए की ओर गया। वैज्ञानिकों को आशा की किरण दिखायी दी कि यदि व्यापक पैमाने पर केंचुआ पालन किया जाये और केंचुए की खाद (वर्मी कम्पोस्ट) का इस्तेमाल किया जाये तो बिगड़ी हुई मिट्टी की सेहत सुधारी जा सकती है। इन्हीं स्थितियों के बीच केंचुआ पालन की योजनाएं बनायी गयीं।
केंचुए को अंग्रेजी में ‘अर्थ वर्म’ (Earth Worm) कहते हैं। पूरे विश्व में इसकी करीब 700 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन्हें मोटे तौर पर तीन भागों में बाँट सकते हैं-

  • 1. एपीजीइक - वे केंचुए हैं जो भूमि के सतह पर रहते हैं।
  • 2. एनीसिक - ये भूमि के मध्य सतह में रहते हैं।
  • 3. एण्डोजीइक - यह जमीन की गहरी सतह में रहते हैं।
भारतीय परिस्थितियों में वर्मी कम्पोस्ट के लिये दो किस्में सर्वोत्तम पाई गयी हैं -
  • 1. आइसीनिया फोटिडा
  • 2. यूडिलस यूजिनी
आइसीनिया फोटिडा को रेड वर्म भी कहते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर इसे ही पाला जाता है। यह लाल भूरे या बैंगनी रंग का होता है। इसकी उत्पादन क्षमता काफी अधिक तथा रख-रखाव आसान होता है। यूडिलस यूजिनी का उपयोग दक्षिण भारत में ज्यादा होता है। कम तापमान के साथ-साथ यह उच्च तापमान भी सहन कर सकता है।

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प्लास्टिक बैड = 1000/-
लेबर =1500/-
गोबर =1500/-
केचुआ= 30×250/-=7500/-
यूनिट वेरिफिकेशन चार्ज = 2500
उदाहरण :- अगर किसान अपने खेत में **पच्चीस बैड **की यूनिट लगवाता है तो किसान को जमीन और ढाई लाख रूपए संस्था को पेमेंट करनी होती है जिसको संस्था 15 से 30 दिनों में किसान के यहाँ लगा देती है , तो पच्चीस बैड से 15000 किलोग्राम्स खाद निकलती है तीन महीने में ,अब संस्था 4/-रूपए के हिसाब से किसान से खाद खरीदकर किसान को 60000/- रूपए प्रति तिमाही पेमेंट करेगी जिसको किसान मासिक रूप में भी ले सकता है इस प्रकार किसान को पच्चीस बैड की यूनिट से 20000/-मासिक आय प्राप्त हो जाती है किसान को सिर्फ यूनिट में पानी की व्यवस्था करनी होती है बाकि सब व्यवस्था संस्था की होती है !
50 बैड की यूनिट 5 लाख में लग जाती है जिससे किसान की आय 40000/-प्रति मासिक आती है 50 बैड की यूनिट एक बीघा जमीन में लग जाती है !
100 बैड की यूनिट 10 लाख रूपए और 2.5 बीघा जमीन में लग जाती है जिससे किसान की आय 80000/-रूपए प्रति मासिक आती है !

एक बैड प्लास्टिक पॉलीथिन का पंद्रह फुट लम्बा और चार फुट चौड़ा बैड होता है जिसमे 15 कुंतल गोबर आता है जिसमे 30 किलोग्राम्स केचुआ डाला जाता है यह गोबर केचुआ का भोजन होता है जिसको यह तीन महीने में खाकर 40% वेस्ट निकालता है जिसको वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है यानि तीन महीने में 600 किलोग्राम्स जैविक खाद तैयार हो जाती है जिसको संस्था 3/- रूपए प्रति किलोग्राम और 4/- रूपए प्रति किलोग्राम् के हिसाब से किसान से खरीद लेती है जिसका अग्रीमेंट संस्था और किसान के बीच हो जाता है एक बैड को लगाने का खर्च दस हजार से चौदह हजार तक आता है,लेकिन संस्था किसान से सिर्फ दस हजार लेती है,और बैड उसके खेत में लगा देती है,संस्था पच्चीस बैड या उससे अत्यधिक बैड ही किसान के खेत में लगाती है, अगर पच्चीस बैड से कम बैड किसान लगाना चाहता है ,तो संस्था उसे अपनी रेंटल या खुद की जमीन पर लगाती है ! संस्था और किसान का कॉन्ट्रैक्ट अग्रीमेंट 36 और 25 महीने के लिए होता है !

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